एक नाव
किनारे पर
दुःख-सुख के
भवसागर
में हिचकोले खाने के बाद
मेरे जीवन की नाव इस घाट आ लगी है
में हिचकोले खाने के बाद
मेरे जीवन की नाव इस घाट आ लगी है
जर्जर देह
कामनाओ की मांस-मज्जा को
छोड़ते हुए
छोड़ते हुए
मोह की डोर
से बंधी है मेरी आखिरी सांसे
मेरे पैरों के नीचे स्मृतियो का जल
मुझे हिला रहा है धीरे-धीरे
मेरे पैरों के नीचे स्मृतियो का जल
मुझे हिला रहा है धीरे-धीरे
कोई कह रहा
है इस घाट पर
यह देह मुझे छोडनी होगी और जाना होगा
उस सत्ता के पास जहाँ से नहीं लौटता
कोई कभी |
यह देह मुझे छोडनी होगी और जाना होगा
उस सत्ता के पास जहाँ से नहीं लौटता
कोई कभी |
____________________________________________
काली स्लेट
समय एक खाली स्लेट की
तरह था।और वर्तमान के अय्याश
रंग भोगते कुछ भोथरे लोग
अपनी गलीज आकांक्षा के फ्रेम में उसे कस रहे थे
तभी तपती दोपहर के सनसनाते एकांत में
मैंने उस पर एक शब्द लिखा- भूख
उस क्षण आसपास चुभती शक्लें
मुखौटों के पीछे आँखें चलाने लगी
वे अपने जमे पैरों पर आतंकित हो गये
स्थिति संतुलन के लिए
मैं कोई रोचक झूठ तलाशने लगा
तभी, बिलकुल तभी
कुछ समझदार लोग मेरे नाबालिग बेटे को
मर्दानी कमजोरी का भेद समझाने लगे थे
मैं समझता था मैं समझ गया हूँ -
दूर डूब गये कल और एक भ्रूण आज के बीच
इतिहास ने जो कुछ हमें दिया है
वह संवेदना के स्तर पर दिमाग पर
फौजी बूटों का दबाव झेलता रहा है
अब तुम आईने के सामने
इस तरह बागी दिखते हो कि वक्त तुमसे पूछे -
तुम्हारी प्राथमिक आवश्यकता
तो तुम कहोगे-एक बदजात औरत और
मुझमें से मेरा ‘मैं’ निचोड़ देने के लिए कोई पुरानी शराब,
मैं जानता हूँ मेरा बेटा
काल की छाती पर लिखा ‘भूख’ शब्द नहीं काटेगा,
शिकारी कुत्तों के दस्ते में शामिल होकर
वह बारूद के खतरनाक खेल करेगा
कभी न कभी भूख को नई परिभाषा देगा
भूख: शरीर में होने वाली ऐसी उत्तेजनात्मक कार्रवाई है
जो आदमी को दुश्मन के खिलाफ खड़ा करती है
मुझे नहीं भूलना चाहिए कि कल इन सुगबुगाते लोगों के बीच
होगी ताज़ी हवा
_______________________________________________
जूते और टोपी
चापलूसी के
लिए दाखिल हुए चाटुकार
सबसे पहले
मुखालफत की जूतों ने
रुक गये-ठिठक कर-पैरों से निकाले जाते ही
रुक गये-ठिठक कर-पैरों से निकाले जाते ही
एकजुट हो
गये
दरवाजे पर
इंकार किया उन्होंने
धूल चाटने से
सिर चढ़ी टोपियाँ गयीं साथ
इसीलिये उछाली गयीं भरे दरबार में
फर्शी सलाम बजाते हुए
गिरीं कई-कई बार
उनके कदमों पर
इंकार किया उन्होंने
धूल चाटने से
सिर चढ़ी टोपियाँ गयीं साथ
इसीलिये उछाली गयीं भरे दरबार में
फर्शी सलाम बजाते हुए
गिरीं कई-कई बार
उनके कदमों पर
खुद्दार थे
मुई खाल के जूते
जो डटे तो डेट रहे अन्त तक
हिनहिनाती रहीं टोपियाँ
राजा साहब की हाँ में हाँ मिलाकर
जो डटे तो डेट रहे अन्त तक
हिनहिनाती रहीं टोपियाँ
राजा साहब की हाँ में हाँ मिलाकर
__________________________________
बेटियाँ
(एक)
जिन्दगी की आपाधापी में
जब सहारे छूटने लगते हैं मँझधार में
मन उदास हो जाता है-अपने से लड़ते हुए
बेटियाँ चुपके से आती हैं सपनों में
थकी-हारी देह को सहलाने-दुलराने के लिए
हारे को भी हारने नहीं देती बेटियाँ।
बेटियाँ हाथ पकड़ लेती हैं तो
अच्छा लगता है
आधे-अधूरे नहीं रह जाते हम
जिन्दगी की आपाधापी में
जब सहारे छूटने लगते हैं मँझधार में
मन उदास हो जाता है-अपने से लड़ते हुए
बेटियाँ चुपके से आती हैं सपनों में
थकी-हारी देह को सहलाने-दुलराने के लिए
हारे को भी हारने नहीं देती बेटियाँ।
बेटियाँ हाथ पकड़ लेती हैं तो
अच्छा लगता है
आधे-अधूरे नहीं रह जाते हम
इस
महासमर में जबकि हमें उस ओर जाना है
बेटियाँ हमें आश्वस्त करती हैं
सकुशल यात्रा के लिए
बेटियाँ हमें आश्वस्त करती हैं
सकुशल यात्रा के लिए
बेटियाँ
हमारे स्वर्ग हैं
बेटियाँ भरोसा हैं- ईश्वर का
अंकुरित-पुष्पित और पल्लवित होती बेटियाँ
एक खूबसूरत दिन की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हैं- हमारे बगीचे की
बेटियाँ हमारी जिन्दगी जीने का
सबसे खूबसूरत बहाना हैं
(दो)
माँ की पवित्र कामनायें हैं बेटियाँ
पिता के सात जन्मों के पुण्यों का फल हैं बेटियाँ
पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना किसी को नहीं
मिलती हैं बेटियाँ
बेटियाँ भरोसा हैं- ईश्वर का
अंकुरित-पुष्पित और पल्लवित होती बेटियाँ
एक खूबसूरत दिन की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हैं- हमारे बगीचे की
बेटियाँ हमारी जिन्दगी जीने का
सबसे खूबसूरत बहाना हैं
(दो)
माँ की पवित्र कामनायें हैं बेटियाँ
पिता के सात जन्मों के पुण्यों का फल हैं बेटियाँ
पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना किसी को नहीं
मिलती हैं बेटियाँ
प्रकृति
के संकीर्तन के बाद
घर में आ गयी हैं बेटियाँ
तो प्यार से सहेजो
इस कुल देवी माँ को !
(तीन)
बेटियाँ खिलखिला रही हैं
दूर कहीं मंदिर में घंटियाँ बज रही हैं
बेटियाँ गा रही हैं
जीवन का पवित्रतम सच कहा जा रहा है
पूरी शिद्दत से
बेटियाँ नाच रही हैं
पूरी सृष्टि नाच रही है आनन्द मंगल की कामना लिए हुए
बेटियाँ बुनियाद हैं - नाते-रिश्तों की
बेटियाँ विस्तार हैं कहे-अनकहे सत्य की
बेटियाँ पृथ्वी हैं
बीज हैं बेटियाँ
गीत हैं - साज हैं बेटियाँ
रस्मो-रिवाज हैं बेटियाँ
बेटियों के रहते
कौन रोक सकता है मकान को घर बनने से
बेटियाँ गर्भ में हों
तो प्रतीक्षा करो इस सौभाग्य के
पृथ्वी पर
अवतरित होने की
घर में आ गयी हैं बेटियाँ
तो प्यार से सहेजो
इस कुल देवी माँ को !
(तीन)
बेटियाँ खिलखिला रही हैं
दूर कहीं मंदिर में घंटियाँ बज रही हैं
बेटियाँ गा रही हैं
जीवन का पवित्रतम सच कहा जा रहा है
पूरी शिद्दत से
बेटियाँ नाच रही हैं
पूरी सृष्टि नाच रही है आनन्द मंगल की कामना लिए हुए
बेटियाँ बुनियाद हैं - नाते-रिश्तों की
बेटियाँ विस्तार हैं कहे-अनकहे सत्य की
बेटियाँ पृथ्वी हैं
बीज हैं बेटियाँ
गीत हैं - साज हैं बेटियाँ
रस्मो-रिवाज हैं बेटियाँ
बेटियों के रहते
कौन रोक सकता है मकान को घर बनने से
बेटियाँ गर्भ में हों
तो प्रतीक्षा करो इस सौभाग्य के
पृथ्वी पर
अवतरित होने की
____________________________________
जबकि दुनिया बहुत खूबसूरत है
जबकि
दुनिया बहुत खूबसूरत है
लोग खूबसूरत हैं
झरने के ठंडे पानी की तरह
समय की चिकनी चट्टानों पर फिसलते हुए
एक सधी हुई लय में-
क्यों अकेले रहा जाए
एकांत में खुद को तलाशते हुए.....
कुछ कदम किसी के साथ चलना
हाथ पकड़कर - काँधे पर सर रख देना
दरवाजे खटखटाना - सतत्
जीवन में आते-जाते जोखिम के बीच
एक उम्मीद के साथ
जमीन के नीचे दबी है कोई बीज
जैसे गर्भ में कोई बच्चा
अंगड़ाई लेता है
जैसे वृक्षों पर आते हैं नए पत्ते
जैसे हवा घुलती है प्राणों में
जैसे ईश्वर को अर्पित होती हैं- हमारी प्रार्थनायें
क्यों खामोश रहा जाए
लोग खूबसूरत हैं
झरने के ठंडे पानी की तरह
समय की चिकनी चट्टानों पर फिसलते हुए
एक सधी हुई लय में-
क्यों अकेले रहा जाए
एकांत में खुद को तलाशते हुए.....
कुछ कदम किसी के साथ चलना
हाथ पकड़कर - काँधे पर सर रख देना
दरवाजे खटखटाना - सतत्
जीवन में आते-जाते जोखिम के बीच
एक उम्मीद के साथ
जमीन के नीचे दबी है कोई बीज
जैसे गर्भ में कोई बच्चा
अंगड़ाई लेता है
जैसे वृक्षों पर आते हैं नए पत्ते
जैसे हवा घुलती है प्राणों में
जैसे ईश्वर को अर्पित होती हैं- हमारी प्रार्थनायें
क्यों खामोश रहा जाए
जबकि
लोग खूबसूरत हैं
झरने के ठंडे पानी की तरह
नकली और थोथे जीवन की काल कोठरी में
दम तोड़ने से बेहतर है-
हम अपनी आवाज को पहचानें
विरोधी स्वरों के घमासान में
स्वयं को सुनें - बुद्धि और विचार की कसौटी पर
खुद को जांचते-परखते हुए-
अतिक्रमण से बचकर
झरने के ठंडे पानी की तरह
नकली और थोथे जीवन की काल कोठरी में
दम तोड़ने से बेहतर है-
हम अपनी आवाज को पहचानें
विरोधी स्वरों के घमासान में
स्वयं को सुनें - बुद्धि और विचार की कसौटी पर
खुद को जांचते-परखते हुए-
अतिक्रमण से बचकर